Tuesday, July 31, 2007

mea और मेरा रूम mate

मैं और मेरा रूममेट अक्सर ये बातें करते हैं,घर साफ होता तो कैसा होता.मैं किचन साफ करता तुम बाथरूम धोते,तुम हॉल साफ करते मैं बालकनी देखता.लोग इस बात पर हैरान होते,उस बात पर कितने हँसते.मैं और मेरा रूममेट अक्सर ये बातें करते हैं.
यह हरा-भरा सिंक है या बर्तनों की जंग छिड़ी हुई है,ये कलरफुल किचन है या मसालों से होली खेली हुई है.है फ़र्श की नई डिज़ाइन या दूध, बियर से धुली हुई हैं.
ये सेलफोन है या ढक्कन,स्लीपिंग बैग है या किसी का आँचल.ये एयर-फ्रेशनर का नया फ्लेवर है या ट्रैश-बैग से आती बदबू.ये पत्तियों की है सरसराहट या हीटर फिर से खराब हुआ है.ये सोचता है रूममेट कब से गुमसुम,के जबकि उसको भी ये खबर है कि मच्छर नहीं है, कहीं नहीं है.मगर उसका दिल है कि कह रहा हैमच्छर यहीं है, यहीं कहीं है.
roma ki एक तस्वीर इधर भी है, उधर भी.करने को बहुत कुछ है, मगर कब करें हम,इसके लिए टाइम इधर भी नहीं है, उधर भी नहीं.
roma कहti है कोई वैक्यूम क्लीनर ला दे,ये कारपेट जो जीने को जूझ रहा है, फिकवा दे.हम साफ रह सकते हैं, लोगों को बता दें

1 comment:

रवि रतलामी said...

बढ़िया रूम मेट है आपका. आगे की दोनों पोस्टें भी हिन्दी में लिखते तो बढ़िया था - वो एमपी सिर और सर वाला :)